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वर्ष 2047 तक भारत हरित ऊर्जा (Green Energy) के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा। इसका सबसे बड़ा फायदा उपभोक्ताओं को होगा। उन्हें सस्ती और स्वच्छ बिजली मिलेगी। 2.5 खरब डॉलर की बचत देश के उपभोक्ताओं को होगी।
अमेरिकी ऊर्जा विभाग की लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी (बर्कले लैब) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। बुधवार को जारी पाथवेज टू आत्मनिर्भर भारत नामक इस अध्ययन के अनुसार, भारत के तीन सबसे अधिक ऊर्जा खपत वाले क्षेत्रों बिजली, परिवहन और उद्योग को परखा गया है। इसमें पाया गया कि ऊर्जा स्वतंत्रता यानी आत्मनिर्भरता हासिल करने से महत्वपूर्ण आर्थिक, पर्यावरण और ऊर्जा लाभ होंगे। इससे 2047 तक 2.5 खरब डॉलर की उपभोक्ता बचत होगी। जीवाश्म ईंधन के आयात को 240 अरब डॉलर प्रतिवर्ष कम करना संभव होगा।
लक्ष्यों को सबसे कम कीमतों में हासिल किया अध्ययन के प्रमुख लेखक निकित अभ्यंकर के अनुसार, भारत ने हरित ऊर्जा (Green Energy) के लक्ष्यों को सबसे कम कीमतों में हासिल किया है। यहां दुनिया के कुछ सबसे बड़े लिथियम भंडार हैं। यह सीधे तौर पर भारत को लागत प्रभावी ऊर्जा स्वतंत्रता की ओर ले जा सकता है।
2035 तक सौ फीसदी नए वाहन इलेक्ट्रिक होंगे
अध्ययन में 2030 तक भारत के 500 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य का भी जिक्र है। इसके बाद 2040 तक 80% स्वच्छ ग्रिड और 2047 तक 90% स्वच्छ ग्रिड। वहीं, साल 2035 तक लगभग 100% बिकने वाले नए वाहन इलेक्ट्रिक हो सकते हैं।
भारी उद्योग में भी हरित हाइड्रोजन
साल 2047 तक भारी औद्योगिक उत्पादन भी मुख्य रूप से हरित हाइड्रोजन और विद्युतीकरण पर निर्भर हो सकता है। इसमें 2047 तक 90% लोहा और स्टील, 90% सीमेंट, और 100% उर्वरक इस बदलाव से उत्पादित होंगे। नए इलेक्ट्रिक वाहनों और ग्रिड-स्केल बैटरी स्टोरेज सिस्टम के निर्माण के लिए आवश्यक (2040 तक अनुमानित 2 मिलियन टन) अधिकांश लिथियम के नए खोजे गए भंडार का उपयोग करके घरेलू स्तर पर उत्पादित किया जा सकता है। भारतीय उद्योग को ईवी और ग्रीन स्टील मैन्युफैक्चरिंग जैसी स्वच्छ तकनीकों की ओर बढ़ने की उम्मीद है। भारत दुनिया के सबसे बड़े ऑटो और स्टील निर्यातकों में से एक है।
ऊर्जा मांग चौगुनी होगी
रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है। आने वाले दशकों में इसकी ऊर्जा मांग चौगुनी हो जाएगी। वर्तमान में, भारत को अपनी जरूरतें पूरा करने के लिए खपत का 90% तेल, 80% औद्योगिक कोयला और 40% प्राकृतिक गैस का आयात करना पड़ता है। ऐसे में वैश्विक ऊर्जा बाजारों में मूल्य और आपूर्ति की अस्थिरता भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव डालती है, जिसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था पर बढ़ी मुद्रास्फीति का असर होता है।