सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) का निजीकरण रुक गया है। न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। एजेंसी ने एक शीर्ष सूत्र का हवाला देते हुए बताया कि ईंधन कीमतों पर स्पष्टता की कमी के चलते दो बोलीदाता पीछे हट गए हैं, जिसके बाद इस कंपनी को हासिल करने की दौड़ में सिर्फ एक बोलीदाता बचा है।
पहचान जाहिर न करने की शर्त पर सूत्र ने कहा, ‘‘हमारे पास सिर्फ एक बोलीदाता है और इसका कोई मतलब नहीं कि एक बोली लगाने वाला अपनी शर्तें थोपे। इसलिए विनिवेश प्रक्रिया फिलहाल रुकी हुई है।’’ सरकार ने बीपीसीएल की विनिवेश प्रक्रिया को वापस लेने पर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है।
बता दें कि अनिल अग्रवाल के वेदांता समूह और अमेरिकी वेंचर फंड अपोलो ग्लोबल मैनेजमेंट इंक के अलावा आई स्क्वेयर्ड कैपिटल एडवाइजर्स ने बीपीसीएल में सरकार की हिस्सेदारी खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी। हालांकि, बाद में दोनों वैश्विक निवेशकों ने अपनी बोलियां वापस ले ली हैं।
कितनी है हिस्सेदारी: सरकार की बीपीसीएल में 52.98 प्रतिशत हिस्सेदारी है। पहले सरकार समूची हिस्सेदारी बेचने की योजना बना रही थी। हालांकि, बाद में ऐसी खबरें आई थीं कि सरकार हिस्सेदारी बेचने की योजना में बदलाव कर सकती है। ऐसा अनुमान लगाया गया था कि सरकार 25-30 फीसदी हिस्सेदारी बेच सकती है। अब बोलीदाताओं के पीछे हटने से सरकार की योजना को झटका लगा है।
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क्यों नहीं मिले थे अधिक खरीदार: भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की दूसरी सबसे बड़ी तेल शोधन और ईंधन विपणन कंपनी को अधिक खरीदार नहीं मिल सके थे। इसकी प्रमुख वजह घरेलू ईंधन मूल्य निर्धारण में स्पष्टता की कमी थी। सार्वजनिक क्षेत्र के ईंधन खुदरा विक्रेता पेट्रोल और डीजल को लागत से कम कीमतों पर बेचते हैं। इससे निजी क्षेत्र के खुदरा विक्रेताओं को मुश्किल हालात का सामना करना पड़ता है। या तो वे घाटे में ईंधन बेचते हैं या बाजार खो देते हैं।