Anil Agarwal Crisis: हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद संकट से घिरे गौतम अडानी (Gautam Adani) के बाद एक और अरबपति इन दिनों मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। ये अरबपति हैं वेदांता (Vedanta) के चेयरमैन अनिल अग्रवाल। गौतम अडानी के ठीक बाद भारतीय टाइकून अनिल अग्रवाल अपनी कर्ज से लदी कंपनियों को लेकर बाजार की चिंताओं के लिए चर्चा में हैं। अनिल अग्रवाल की कंपनी में भी कुछ ठीक नहीं चल रहा है। माइनिंग से लेकर तेल तक के समूह वेदांता के शेयरों में पिछले आठ सेशंस से गिरावट का सिलसिला चल रहा था। कर्ज तले दबी इस कंपनी को भारी फंड की जरूरत है। इधर, कई सेंट्रल बैंकों ने महंगाई रोकने के लिए ब्याज दरों में इजाफा किया है, इससे ग्लोबल डेट मार्केट में भी तंगी है। हालांकि, मुद्दा सिर्फ यही नहीं खत्म हो रहा है इसके अलावा भी कंपनी कई तरह की संकटों से जूझ रही है। हाल ही में सरकार की तरफ से भी कंपनी को तगड़ा झटका मिला है। दरअसल, वेदांता पैसे जुटाने के लिए अपनी एक कंपनी की हिस्सेदारी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (Hindustan Zinc Ltd) को बेचना चाह रही थी लेकिन सरकार ने इसकी मंजूरी नहीं दी। यानी कंपनी की इस योजना पर भी पानी फिर गया। बता दें कि बता दें कि हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में सरकार की करीब 30 फीसदी हिस्सेदारी है।
कब से शुरू हुआ वेदांता का संकट
वेदांता का संकट तब शुरू हुआ जब पिछले साल अक्टूबर में रेटिंग एजेंसी मूडीज ने लंदन स्थित होल्डिंग कंपनी वेदांता रिसोर्सेज को ‘डाउनग्रेड’ कर दी थी। इससे कंपनी की कर्ज चुकाने की कैपासिटी पर भी सवाल उठने लगे। मूडीज का कहना है कि कंपनी को अप्रैल और मई 2023 तक 90 करोड़ डॉलर का भुगतान करना है, लेकिन कंपनी के पास फंडिंग का कोई सोर्स नजर नहीं आ रहा है। जबकि मूडीज को अक्टूबर के अंत तक ही फंडिंग हासिल करने की उम्मीद थी। इसके अलावा वेदांता रिसोर्सेज के पास अक्टूबर 2022 और मार्च 2023 के बीच 830 मिलियन डॉलर का भुगतान करना था। मूडीज के मुताबिक, कुल मिलाकर देखा जाए तो कंपनी को मार्च 2024 तक 3.8 अरब डॉलर का बाहरी कर्ज, 60 करोड़ डॉलर का इंटरकंपनी लोन और 60 करोड़ डॉलर का इंटरेस्ट बिल चुकाना है। हालांकि, वेदांता ने मूडीज की इस धारणा “अत्यधिक निराशावादी” बताया था और घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों सहित कई स्रोतों से धन जुटाने के कंपनी के ट्रैक रिकॉर्ड को नजरअंदाज कर दिया। वेदांत रिसोर्सेज ने तर्क दिया कि चुनौतीपूर्ण कारोबारी माहौल के बावजूद चल रहे वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में उसने अपनी सहायक कंपनी वेदांत लिमिटेड में लगभग 1 बिलियन डॉलर और 1.5 बिलियन डॉलर जुटाए हैं।
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एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स का अलार्म
बीते 8 फरवरी को एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने बताया कि सितंबर के बाद वेदांता को सितंबर के बाद लिक्विडिटी के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स के मुताबिक वेदांता को सितंबर से आगे लिक्विडिटी बनाए रखने के लिए $2 बिलियन फंड राइज करना बेहद जरूरी है।
HZL का विवाद पर रहा भारी
कर्ज के हालात से निपटने के लिए वेदांता फंड जुटाने की कोशिश कर रही है। इसी के तहत कंपनी अपने इंटरनेशनल जिंक बिजनेस को हिंदुस्तान जिंक को बेचना चाहती है लेकिन सरकार ने इसका विरोध किया है। यह वेदांता के अनिल अग्रवाल के लिए एक बड़ा झटका है। दरअसल, केंद्र सरकार ने वैल्यूएशन की चिंताओं को लेकर वेदांता के इंटरनेशनल जिंक कारोबार को हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को 2.98 बिलियन डॉलर में बेचने के प्रस्ताव का विरोध किया है। सरकार ने वेदांता को अफ्रीका स्थित संपत्तियों की बिक्री हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को करने को लेकर कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है।
आपको बता दें कि केंद्र सरकार के अधीन खान मंत्रालय ने 17 फरवरी को हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को लिखे पत्र में कहा- हमें भारत सरकार द्वारा नियुक्त किए गए नामित निदेशकों से पता चला है कि 19 जनवरी, 2023 को हुई कंपनी के निदेशक मंडल की बैठक में पूर्व स्वामित्व वाली उसकी विदेशी सब्सिडयरी कंपनी के गठन को मंजूरी दी गई। हम आपके ध्यान में लाना चाहते हैं कि भारत सरकार इस तरह के किसी भी प्रस्ताव का विरोध करेगी और इस संबंध में उपलब्ध हर कानूनी रास्ते को तलाशेगी। बता दें कि हिंदुस्तान जिंक में सरकार की 29.54 हिस्सेदारी है, शेष स्टेक वेदांता के पास है।
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आगे हैं कई मुश्किलें
पिछले आठ सत्रों में गिरावट के बाद बुधवार को वेदांता के शेयर में तेजी थी। दरअसल, कंपनी ने निवेशकों को आश्वासन दिए हैं कि वे कर्ज चुनाने में सक्षम हैं। हालांकि, आज गुरुवार को शेयर फिर से टूट गए हैं। वेदांता रिसोर्सेज ने कहा कि उसने मार्च 2023 तक चुकाए गए अपने सभी कर्ज का प्री-पेमेंट कर दिया था। ब्लूमबर्ग में लिखा है कि भारत के माइनिंग उद्योगपति को दो बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। सबसे पहले, जब तक चीन का आर्थिक स्थिति नहीं बदलती तब तक यह संकट मंडराता रहेगा। क्योंकि महामारी के बाद के सुपरनॉर्मल कमोडिटी मुनाफे का युग समाप्त हो सकता है। अगर कंपनी हिंदुस्तान जिंक की नकदी को अपने निजी स्वामित्व वाले वेदांता रिसोर्सेज तक नहीं ले जा सकती, तो कर्ज चुकाने की उनकी क्षमता कम हो सकती है, जिससे उन्हें और अधिक उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। वर्तमान में फेड द्वारा दरें बढ़ाने और मौजूदा वेदांता रिसोर्सेज बॉन्ड के मूल्य में गिरावट की उम्मीद के साथ, अग्रवाल को उचित कीमत पर नए फंड जुटाने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। दूसरी बात, अगर अग्रवाल हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड पर संपत्ति की बिक्री को मजबूर करने की कोशिश करते हैं और इस प्रक्रिया में सरकार की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में ताइवान के फॉक्सकॉन टेक्नोलॉजी ग्रुप के साथ $19 बिलियन सेमीकंडक्टर कारखाने के लिए साझेदारी संदेह के घेरे में आ सकती है। बता दें कि यह सरकार द्वारा फाइनेंस की जाने वाली सबसे प्रमुख प्रोजेक्ट है।