जिम्बाब्वे को छोड़कर किसी अन्य देश ने भारतीय रुपये को कानूनी मुद्रा का दर्जा नहीं दिया है, लेकिन भारत के पड़ोसी देश आपसी समझ के कारण एक दूसरे की मुद्रा को स्वीकार करते हैं। इसमें नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और मालदीव शामिल हैं। भारत ने कुछ मौकों पर ईरान से तेल के लिए रुपये में भुगतान किया है। वहीं कनाडा के साथ भी विशेष अवसरों पर रुपये में कारोबार हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए देसी बैंकों को ढांचागत सुधार करना होगा। उन्हें साइबर सुरक्षा को लेकर बेहद ऊंचे मानदंड अपनाने होंगे।
बैंकों को विदेश में विस्तार का बड़ा मौका मिलेगा
आईआईएफल के उपाध्यक्ष (करंसी एवं कमोडिटी) अनुज गुप्ता ने हिन्दुस्तान को बताया कि रुपये में अंतरराष्ट्रीय बाजार मौजूदा समय में ईरान समेत कुछ चुनिंदा देशों के साथ विशेष शर्तों के साथ होता है। यदि कुछ देशों को भरोसे में लेकर भारत आगे बढ़ता है तो इसके कई फायदे होंगे। इससे रुपये में मजबूती आएगी और कारोबार के नए अवसर बनेंगे। इसके अलावा बैंकों को विदेश में विस्तार का बड़ा मौका मिलेगा जो रोजगार सृजन में मदद करेगा।
दुनिया में 85 व्यापार अमेरिकी डॉलर में
दुनिया में 85 व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है। दुनिया में 39 कर्ज डॉलर में दिए जाते हैं और कुल डॉलर की संख्या के 65 का इस्तेमाल अमेरिका के बाहर होता है। डॉलर को अंतरराष्ट्रीय व्यापार करंसी भी कहा जाता है। इसके बाद यूरो, ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और चीनी यूआन का स्थान है।
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महंगाई पर अंकुश लगाने में मददगार
भारत अपनी कुल तेल जरूरतों का करीब 80 फीसदी आयात करता है और इसके लिए डॉलर में भुगतान करता है। यदि कच्चे तेल के दाम नहीं बढ़ते हैं , लेकिन डॉलर महंगा हो जाता है तो उस स्थिति में भी भारत को महंगा खरीदना पड़ता है।
कच्चा तेल फिर भड़का सकता है महंगाई, जलेगी कमाई और बिगड़ेगा रसोई का बजट
भारत तेल के तीन बड़े खरीदारों में शामिल है। ऐसे में यदि तेल निर्यातक देशों बात कर वह रुपये में भुगतान स्वीकार करने को सहमत कर ले तो डॉलर महंगा होने के बाद भी उसे तेल के लिए ऊंची कीमत नहीं चुकानी होगी। इससे रिजर्व बैंक और सरकार को देश में महंगाई पर अंकुश लगाने में भी मदद मिलेगी।